कलयुग में कब खत्म हो जाएगा पृथ्वी पर मां गंगा का अस्तित्व? पुराणों में है इसका जिक्र

सनातन धर्म में गंगा नदी को मां का दर्जा प्राप्त है. यह बहुत ही पूजनीय और पवित्र नदी मानी गई है. श्रीमद् भागवत पुराण में गंगा नदी के पृथ्वी पर अवतरण की कथा मिलती है. भागीरथ ऋषि अपनी कठिन तपस्या के बल पर गंगा नदी को पृथ्वी पर लेकर आये.गंगोत्री ग्लेशियर से यानी गोमुख से पिघलाकर निकलने वाली गंगा नदी धीरे-धीरे अब लुप्त हो रही है वैज्ञानिक दृष्टि से भी गंगा नदी का जल स्तर अब कम होता जा रहा है. तय समय के अनुसार सरस्वती और पद्मा नदी धरती से अपना अस्तित्व समाप्त कर स्वर्ग की ओर जा चुकी है.

पृथ्वी पर कैसे आयी गंगा : धरती पर मां गंगा की आगमन की कहानी में बताया जाता है कि राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए हिमालय पर कठोर तपस्या की. ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर राजा भगीरथ को गंगा जी की धारा का मंडल से दे दी क्योंकि गंगा जी बहुत अधिक गहरी थी जिस वजह से उन्हें भगवान भोलेनाथ ने अपनी सर पर जटाओं में धारण किया तत्पश्चात उन्हें धरती पर भेजा.

भागवत पुराण में गंगा के बापस जाने का जिक्र : श्रीमद् भागवत पुराण में गंगा माता को स्वर्ग में वापस जाने का जिक्र मिलता है इस ग्रंथ में भगवान विष्णु ने नारद जी को बताया है कि कलयुग में 5000 साल बीतने के पश्चात जब धरती पर पाप का बोझ बहुत अधिक बढ़ जाएगा और धर्म के हानि होने लगेगी. लोगों की मन में लोग लालच वासना छल छिद्र कपट का वास होगा. गंगा स्नान से तब उन्हें कोई लाभ नहीं मिलेगा. ऐसी स्थिति में मां गंगा पूर्ण है स्वर्ग लोक को लौट जाएंगी.

श्रीमद्देवीभागवत के मुताबिक, गंगा नदी एक बार स्वर्ग वापस लौट सकती है. इसके लिए एक कथा बताई गई है : एक बार गंगा और सरस्वती के बीच विवाद हो गया. बीच बचाव के लिए लक्ष्मी आईं, लेकिन सरस्वती ने उन्हें वृक्ष और नदी के रूप में पृथ्वी पर पापियों का पाप स्वीकार करने का श्राप दे दिया.
इसके बाद गंगा और सरस्वती ने एक-दूसरे को नदी रूप में पृथ्वी पर रहने का श्राप दे दिया. भगवान विष्णु ने कहा कि जब कलयुग के 5,000 साल पूरे हो जाएंगे, तब तीनों देवियां वापस अपने-अपने स्थान पर लौट जाएंगी.
गंगा नदी से जुड़ी कुछ और बातें: पौराणिक कथा के मुताबिक, गंगा नदी करीब 14 हज़ार साल पहले पृथ्वी पर आई थीं. राजा भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा नदी पृथ्वी पर आई थीं. भगवान शिव ने गंगा को धरती पर उतारने के लिए अपनी जटाओं में उतारा था. गंगा नदी की जलापूर्ति करने वाले हिमनद की 2030 तक खत्म होने की आशंका है.

गंगा से पहले भारत में बहती थी ये नदी : शोध के अनुसार गंगा नदी से पहले सरस्वती नदी का अस्तित्व था. वैदिक सभ्यता में सरस्वती ही सबसे बड़ी और मुख्य नदी थी. ऋग्वेद में सरस्वती नदी का उल्लेख मिलता है और इसकी महत्ता को दर्शाया गया है. महाभारत में भी सरस्वती का उल्लेख है और कहा गया है कि यह गायब हो गई नदी है, जिस स्थान पर यह नदी गायब हुई, उस स्थान को विनाशना नाम दिया गया है. इसी नदी के किनारे ब्रह्मावर्त था, कुरुक्षेत्र था, लेकिन आज वहां जलाशय है. जानकारों के अनुसार प्राचीन समय में सतलुज और यमुना, सरस्वती नदी में आकर ही मिलती थी. माना जाता है कि प्रयाग में गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन होता है इसीलिए उसे त्रिवेणी संगम कहते हैं.

सरस्ववती नदी का उद्गम स्थल : वैदिक धर्मग्रंथों के अनुसार धरती पर नदियों की कहानी सरस्वती से शुरू होती है। सरिताओं में श्रेष्ठ सरस्वती सर्वप्रथम पुष्कर में ब्रह्म सरोवर से प्रकट हुई. कहते हैं कि प्राचीन काल में हिमालय से जन्म लेने वाली यह विशाल नदी हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और गुजरात के रास्ते आज के पाकिस्तानी सिन्ध प्रदेश तक जाकर सिन्धु सागर (अरब की खड़ी) में जाती थी.